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Monday, October 29, 2012


 कुर्सी के लिये कुपोषण का कपट

दिल्ली दूर नहीं लेकिन पहुंचने के लिये रास्ता चाहिये और रास्ता जब पेट से होकर निकले तो मंजिल तक पहुंचने की उम्मीद बढ़ जाती है । शायद यही वजह कि  एक तरफ गुजरात के पूर्व मंत्री मायाबेन कोडनानी समेत 32 लोगों को नरोडा पाटिया मामले में सजा सुनाई गई और दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी लंदन के एक चर्चित अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल को कुपोषण पर बयान देकर मीडिया और लोगों का ध्यान इस मुद्दे से भटकाने में सफल रहे । हालांकि मोदी के इस बयान का चौतरफा विरोध होने के बाद वाल स्ट्रीट जर्नल ने इस इंटरव्यू को अपने बेवसाईट से उतार लिया है।
कुपोषण पर दिये बयान में मोदी ने कहा था कि मध्यवर्गीय परिवारों  की  लड़कियां फैशन के चलते सेहत पर ध्यान नहीं देतीं । लड़कियां मोटी होने की वजह से दूध पीने से इंकार करती हैं । मोदी ने इंटव्यू में यह भी बताया  कि  गरीबों के फूड सप्लीमेंट के नाम पर सरकार ने  1900 करोड़ रुपए का बजट बनाया है । वर्ष 2007 में ये खर्च महज 206 करोड़ रूपये का था। मोदी के इस बयान पर गुजरात की जनता में आक्रोश है । लोगों ने  इस बयान कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है ।
ये तमाम दावे अपनी जगह,  मोदी का बयान ही सूबे की जनता के प्रति उनका नजरिया जाहिर करने के लिए काफी है। संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार भारतीय राज्यों के भूखमरी सूचकांक में  गुजरात का  13 वां स्थान  है। यहां तक कि उड़ीसा, यूपी, बंगाल और असम जैसे पिछड़े राज्यों  की स्थिति भी गुजरात से बेहतर है। ऐसी विषम परिस्थितियां मोदी के विकास के दावे की हकीकत बयां करता है, और जीडीपी  आंकड़ो के तिलिस्म को भी धराशायी करता है ।
       दरअसल गुजरात की ख्याति जीडीपी और संप्रदायिक हिंसा के कोख से ही निकल कर पूरे देश में फैली है । मौत (कुपोषण) और हत्या (नरोडा पाटिया हिंसा) को संतुलित करने के लिए मोदी का कुपोषण पर बयान पूरी तरह से सियासी  है । राजनीतिक बिसात पर इस तरह का दांव नेताओं के लिए कोई नई बात नहीं है । कुपोषण के मुद्दे से मोदी मीडिया का भटकाव चाहते थे जिसमें वह सफल भी हुए , लेकिन विकास का पैमाना जो उन्होनें खुद गुजरात में स्थापित किया है , कई सवालों को खड़ी करती है । खासकर भूखमरी और सांप्रदायिक हिंसा की गतिविधियों के संदर्भ में ।
 नरोडा पाटिया केस की चर्चा ने कहीं न कहीं मोदी के सांप्रदायिक छवि को फिर से जिंदा करने का काम किया है । एक तरफ मोदी कहते हैं कि अगर मैं गोधरा दंगों का दोषी हूँ तो मुझे फांसी पर लटका दो और दूसरी तरफ कहते हैं कि यदि भारत का विकास करना है तो देश को गुजरात के विकास का माडल अपनाना ही होगा । मोदी की पहचान विकास के रोल माडल के साथ साथ एक सांप्रदायिक नेता की भी रही है । लेकिन मोदी  ऐसा बयान देकर कहीं न कहीं अपने विकास के मूल मुद्दे से भटकते नजर आ रहें हैं ।
मोदी के इस बयान ने सियासी हलकों में सनसनी फैलाने का काम किया है । कांग्रेसनीत सरकार के घोटालों से देश की जनता परेशान है । स्वयं बीजेपी भी इस समय में नेतृत्व संकट के दौर से गुज़र रही है । दरअसल देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में मोदी विकास का पर्याय बनकर उभरे हैं । लिहाजा ये माना जा रहा है कि मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी के लिए सबसे उपयुक्त हैं । जाहिर है वर्तमान काल और परिस्थिति मोदी के लिये अनुकूल है । क्योंकि कैग के रिपोर्ट से लेकर रामदेव के आंदोलन तक, सभी में कांग्रेस को फज़ीहत का सामना करना पड़ा है ।
      पिछले सात वर्षों से गुजरात का औसत विकास दर 10 फीसद का रहा है , जो अपने आप में नरेन्द्र मोदी के सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही है । हाल में नीलसन और इंडिया टुडे ने एक सर्वें कराया था जिसमें लोगों ने प्रधानमंत्री पद के लिये मोदी को अपनी पहली पसंद बताया है । प्रतिष्ठित टाईम मैग्जीन ने भी मोदी को भारत के प्रधानमंत्री पद के लिये प्रबल दावेदार बताया था ।
      लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने की राह में कई रोड़े हैं, और इसकी शुरुआत उनके गृह राज्य से ही शुरु होती है । एक तरफ संजय जोशी भाजपा के भीतर ही रहकर ही मोदी के लिये दिक्कतें पैदा कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ केशुभाई पटेल जैसे कद्दावर नेता बागी भाजपाई नेताओं के साथ मिलकर नई पार्टी बना चुके है । आगामी चुनाव में मोदी के लिये वे नई मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। वैसे एनडीए में पीएम पद के लिए उनके नाम पर भविष्य में  सहमति बनती नहीं दिखाई दे रही है । एनडीए में नंबर दो का हैसियत रखने वाली पार्टी जनता दल (यू)  को मोदी की उम्मीदवारी से सख्त ऐतराज़ है ।
हाल ही में गूगल हैंग आउट पर  मोदी ने सेकुलरिज्म की परिभाषा देते हुए कहा कि इंडिया फर्स्ट ही मेरे लिये सेकुलरिज्म है। मोदी का यह बयान इस तऱफ ईशारा करता है कि वे संप्रदायिकता को विकास से सुपर इंपोज करना चाहते है ।
बहरहाल राजनीतिक रण में बयान के तरकश से ही निशाना साधा जाता है । गुजरात में चुनावी बयार बहना शुरु हो चुका है । ऐसे में मोदी को नरोडा पाटिया मामले में मिले झटके से कितना नुकसान होगा ये तो आगामी गुजरात विस चुनाव के महाभारत में ही साफ हो पायेगा ।      
  ©निरंजन 

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