फुच्चे, लुच्चे, मीडिया और रेवोल्यूशनरी
थॉट्स
क्रांति बड़ा पाक शब्द है, इसे
ढ़ोने क्रांतिकारी अब बिरले ही मिलते हैं और यदि कहीं मिल जाएं तो लुप्तप्राय जीव
की तरह सरकारें उन्हें ढ़ूंढ कर, उनका बैंड बजा डालती हैं। पता नहीं क्यों सरकारों
को उनका पाक इरादा, नापाक क्यों लगता है। हां, क्रांति के अपडेटेड वर्जन
रेवोल्यूशनरी थॉट्स की बात कुछ अलग है। शहरी फुच्चा कल्चर में यह शब्द एवैं ही
नहीं पॉपुलर है। इसका अपना रेलेवेंश है। सिविल सोसायटी द्वारा वेटेड वर्ड है,
जिससे फुच्चों का वेट वैसे बढ़ता चला जाता है जैसे रुपये के बरक्स डॉलर का भाव बढ़ता
ही जा रहा है। क्रांति में थोड़ी हार्डनेस है, शायद इसलिए कि अंग्रेज और खजान
सिंह, दुखवंत सिंह जैसे भारतीय अंग्रेज इसे विद्रोह समझते हैं, रेवोल्यूशनरी थिंकिंग
क्रांति के उदारवाद का परिणाम है। रेवोल्यूशन के संदर्भ में उदारवाद को एलपीजी परिभाषित
करता है।( अगर एलपीजी (लिबरलाईजेशन,प्राईवेटाइजेशन,ग्लोबलाइजेशन) के आने से एलपीजी
इतना महंगा हो जाएगा इसका जरा सा भी अंदेशा होता तो शायद बैलेंस ऑफ पेमेंट को दुरूस्त
के लिए देश की गृहणियां इक्यानवें में ही सरकार को अपने जेवर दान में दे चुकी
होतीं।)
यहां के फुच्चों/ बड्डीज/ गायज (बिसलेरी वाले मैंगो
पीपल कंर्स्नड ह्यूमेन बीइंग) की इंटेलेक्चुअल ग्रैविटी, शो करने का पैरामीटर है,
रेवोल्यूशनरी थिंकिंग। बड़ा पॉपुलर शब्द है यह, जिसे सोशलिस्ट हैट की तरह हर
फुच्चा अपने सर पर रखकर इंटेलेक्चुअल क्लब का मेंबर बनना चाहता है। फुच्चों की
अपनी खास तह़जीब और संस्कृति है, जिसे समथिंग कोलमन कंपनी के अखबार ने सोशल
वैलिडिटी देने का जिम्मा उठाया है। फुच्चों के पेरेंट्स के साथ प्राइवेट ट्रीट्री
के तहत यह अपने मीडियानेट के माध्यम से इसे इंडोर्स भी कर रहा है। शहरी पॉप
यूनिवर्सिटी जैसे डीयू, आईपी, जो स्टूडेंट की बजाय फुच्चों को अपने यहां एडमिशन
देते हैं। यहां 36 रुपये जितनी भारी भरकम रकम प्रतिदिन कमाने वाले अमीर भारतीयों
के बच्चों को दूर रखने और गरीब डाउन टू अर्थ, टैक्स ना चुकाने वाले, सफेद धन ऱखने
वाले कालेपोश, सब्सिडी पाने वाले गरीब- भिखमंगे कॉरपोरेट्स, ब्यूरोक्रेट्स, एडवोकेट्स
के मेरिटोरियस इनोसेंट चिल्ड्रेन को एडमिशन देने की नई नई स्ट्रैटजी बनाई जाती है।
फुच्चा पार्टी से निकलते ही
इस जंतु का नया ठिकाना ग्लैमर की ओर कदम होता है और यदि ससुरा मीडिया में काम मिल
जाए, तो फिर बंदे में गट्स आ जाता है। बड़ी से बड़ी सख्सियत से चाहें क्यों ना दो
पल की मुलाकात हो, नाता वर्षों का जुड़ जाता है, और इसका इंस्टेंट एविडेंस(साक्ष्य)
तुरंत फेसबुक पर आ जाता है।
फिल्मी हस्ती हो या सूबे का
मिनिस्टर या फिर कोई इंडस्ट्रियलिस्ट, उसे इंस्टेंटली अपना फ्रेंड, कजिन (कजिन
शब्द उदारीकरण हो गया है भाई बहन के साथ-साथ गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड के लिए भी इस्तेमाल
में लाया जाता है) या रिलेटिव बना लेते हैं। इसे वर्चुअल पावर स्ट्रेंथ कहते हैं।
इसका ज्यादातर टेक्नोलॉजी इललिटरेट पावर जोन में किया जाता है, जिसके पहले निशाने
पर पॉलिटिशंस होते हैं। फुच्चों की भाषा में इन्हें फूलिस (बेवकूफ) कहते हैं। “ यू नो नॉन इंग्लिश स्पीकिंग
फूलिस काइंड ऑफ पॉलिटिशियंस, दे आर टोटली इडिएट। डोंट यू नो, आई हैव टॉक्ड विथ ए
नंबर ऑफ सच इडिएट्स, दे थॉट दैट “जैस्मिन रेवोल्यूशन टूक प्लेश द्यू टू फेसबुक”, बट इट इज ए मिथ, इट्स
ओनली द पार्ट ऑफ अमेरिकन स्ट्रैटजी जस्ट लाइक इंग्लिश मेन्स डिवाइड एंड रूल पॉलिसी,
रिप्लेस्ड बाय “रेवोल्यूशंस एंड क्राइसिस आर प्लेजर फॉर अमेरिकन्स ” इट हैज हेल्प्ड देम
टू स्ट्रैन्थैन देयर इकॉनमी। सच एन इडिएट । ओह यार चूतिया कह चूतिया, इडिएट में वो वाली फिलिंग नहीं आती । बाय यूजिंग
वर्चुअल मीडियम इट्स क्वाइट इजी टू मेक देम फूल।
मीडिया में अब तो केवल
महान व्यक्तित्व ही संपादक बन पाते हैं, क्रांतिकारी संपादक को रेवोल्यूसनरी थॉट
वाले एडिटर्स ने रिप्लेस कर दिया है। युवाओं को फुच्चा बनाने वाले इन एडिटर्स का
बस चलता तो कबका नेताओं को लुच्चा बना दिया होता और शायद आज लुच्चे कहे जाने में
नेताजी अपने आप को गौरवान्वित भी महसूस करते। कोलमन कंपनी ने शायद इस शब्द का
पेंटेंड भी करा लिया होता वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी ऑरगेनाइजेशन से या नहीं
तो डीआरडीओ और आईआईटी के नक्शेकदम पर अफ्रिकन या सोमालियन, भूटान, नेपाल जैसे किसी
तकनीक संपन्न अमीर राष्ट्र के इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी ऑरगेनाइजेशन से। इनके द्वारा
लोकहित में किए गए इन बेहतर कारनामों से भले ही कुछ कुर्त्ता पहनने वाले झोलाछाप
जर्नलिस्ट नाराज हों लेकिन मीडिया के बेताज बादशाहों, सुरदाजों, चीखनदाजों, शो
ऑफजादों, भीमताल, नयनताल, कामकलाबाज, सुपरहीरो की बांछे (वैसे तो आजकल सबकुछ सफाचट
होता है, लेकिन जहां भी लोकलाज के कारण बची होगी) खिल जरूर उठेगी। हां, एक और हैं,
जिनके कारण बीते 20 सालों में ऐसे महान सूरमा पैदा हुए। उन्हें बड़ी तसल्ली हुई
होगी। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पुलिस सुप्रिटेंडेंट (एसपी ) की आत्मा
को गहरी शांति की प्राप्ति हो रही होगी। इसी दिन के लिए तो उन्होंने आयरन कट्स
आयरन के मुहावरे को पलटकर रख दिया था। सिरियस इंफो आयटम के लिए सीरियस जर्नलिस्ट नो
वे, दे विल स्पॉयल द होल इंडस्ट्री, ओनली फुच्चाज आर अलाउड। विल हैव द
स्लोगन लाइक समथिंग दैट करोलबाग वाले अरोड़ा मेड, डोंट यू नो द “ही” कांसेप्ट, रिश्ते ही रिश्ते। हैव आईडिया, ओके यस प्लेस दीज
वर्ड्स बिफोर रीडिंग एनी न्यूज- कंट्री
सेज, होल कंट्री इज आक्सिंग यू, वी आर द फर्स्ट ब्रॉडकास्टिंग दिस न्यूज/ हैज ब्रॉडकास्टेड
दिस न्यूज। क्लोज योर आइज एंड ऑनली फॉलो मी, यू पीपल वन डे रिमेंबर, यू पीपल बिकम
द लीडर्स ऑफ दिस इंडस्ट्री (एज आई नो टुडे यू आर इडिएट, विल बी इडिएट फॉरएवर, आई
एम हैप्पी बिकाज ऑफ यू पीपल इन फ्यूचर नो बॉडी विल रिमेंबर मी एज “फादर ऑफ द नॉनसेंस
मीडिया” ऑर द ग्रेट एडिटर्स ऑफ इडिएट्स)
© निरंजन
1 comment:
Thank you for sharing very useful information on Essay Hindi
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