Pages

Friday, June 18, 2010


वकालत करने के लिए देना होगा परीक्षा


वकालत करने के लिए इच्छुक विधि स्नातकों को इस साल से  बार काउंसिल आफ इंडिया की ओर से अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली परीक्षा से गुजरना होगा। इसके लिए बार काउंसिल आफ इंडिया रूल्स के अध्याय चार,भाग तीन में नए नियमों को शामिल किया है। नए नियमों को लागू करने के लिए अधिवक्ता अधिनियम ,1761 के अनुच्छेद 49(1) में बदलाव किया गया है। नए नियम में प्रैक्टिस के लिए अधिवक्ता अधिनियम के धारा 24 के तहत नामांकन कराना काफी नहीं होगा ,वरन् उन्हें इस परीक्षा से गुजरना होगा। पहले से प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं को इस प्रकिया से मुक्त रखा गया है। परीक्षा का आयोजन काउंसिल के विधि शिक्षा संकाय औऱ रेनमेकर मिलकर कर रहे हैं। रेनमेकर एक लीगल मार्केट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी है, जिसकी स्थापना एन.एल.एस.आइ.य़ू बंगलुरु के पूर्ववर्ती छात्रों द्वारा वर्ष 2007 में किया गया था। परीक्षा का आय़ोजन साल में दो बार किया जाएगा । वर्ष 2011 से यह परीक्षा अप्रैल औऱ नवंबर माह में आयोजित की जाएगी। पहली बार आल इंडिया बार एक्जामिनेशन 5 दिसंबर 2010 को आयोजित किया जा रहा है। परीक्षा परिणाम में कोई रैंक नहीं प्रदान किया जाएगा, परिणाम पूर्णतः पास फेल पर आधारित होगा । परीक्षा में उन्हीं विषयों से प्रश्न पूछे जाएंगे जिसे बार काउंसिल ने तीन वर्षीय एवं पांच वर्षीय विधि स्नातक परीक्षा के लिए निर्धारित कर रखा है। परीक्षा में सौ बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाएंगे । परीक्षा में शामिल होने का शुल्क 1300 रूपये रखा गया है।  परीक्षा पूरे भारत में नौ भाषाओँ में आयोजित की जाएगी। परीक्षा के जरिए भारत में किसी वकील की भारत में वकालत करने की क्षमता के परखा जाएगा। वर्तमान में बार काउंसिल द्वारा रजिस्टर्ड अधिवक्ताओं की संख्या ग्यारह लाख है। पूरे देश में एक हजार ला कालेज हैं जिसमें तकरीबन पांच लाख छात्र अध्ययनरत हैं। प्रत्येक वर्ष भारत में साठ हजार छात्र वकालत ज्वाईन करते हैं।    
                        बार काउंसिल के अध्यक्ष गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि यह यह परीक्षा कानूनी पेशे के गुणवत्ता को बरकरार रखने में मदद करेगी । विदेशी ला फर्मों के भारत में आगमन पर प्रश्न पूछे जाने पर उन्होनें कहा कि हम भारत में विदेशी वकीलों के प्रवेश का विरोध करते हैं । विदेशों में वकालत प्रोफेशन है लेकिन भारत में वकालत अभी भी सेवा है और बार काउंसिल आफ इंडिया की भूमिका भारतीय वकीलों के प्रोफेशनल आइडेंटिटी की रक्षा करना है। गौरतलब है कि मेडिकल कांउसिल आफ इंडिया भी इस तरह के परीक्षा को आयोजित करती है। यह परीक्षा ऐसे मेडिकल छात्रों के लिए आयोजित की जाती जिन्होनें मेडिकल की पूरी पढ़ाई विदेश में की है या आधी पढ़ाई भारत में और आधी विदेश में की है।  इस परीक्षा में पास होने के पश्चात ही छात्रों को देश में मेडिकल प्रैक्टिस की अनुमति दी जाती है। लेकिन बार काउंसिल आफ इंडिया स्थानीय छात्रों के लिए इस तरह के परीक्षा का आयोजन कर रही है। इसका सीधा अर्थ है कि भारतीय विश्वविद्यालय विधि शिक्षा की गुणवत्ता के बरकरार रखनें में असमर्थ साबित हो रहें है। इसके पीछे का कारण अध्यक्ष महोदय ने अपने दृष्टि पत्र में किया है कि देश में विधि शिक्षा के लिए  आवश्यक पर्याप्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं इंफ्राटक्चर का अभाव है । बदलते समय के मांग के अनुसार वकीलों में आवश्यक कौशल क्षमता का विकास नहीं हो रहा है । तकनीकी ग्राह्यता और आधुनिक आर्थिक वयवस्था से जुड़ाव की गति बहुत धीमी है। इन समस्याओं को देखते हुए बार काउंसिल मार्च 2010 तक इन समस्याओं का हल ढूढ़ने एवं इसके समाधान को लागू करने के लिए कटिबद्ध है जिससे कि भारतीय अधिवक्ताओं एवं उनके पेशे को मजबूती प्रदान किया जा सके ।  अखिल भारतीय बार परीक्षा की घोषणा के लिए आयोजित प्रेस वार्ता में कानून मंत्री वीरप्पा मोईली  ने कहा कि विधि शिक्षा में तब तक बड़ा बदलाव संभव नहीं जब तक कि इस पेशे में बड़ा बदलाव न हो। इस पेशे में धन,समृद्दि और विकास तीनों है। वकालत के पेशे का बाजार केवल भारत में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर मौजूद है। हम लोगों को देश के सभी राज्यों में एक राष्ट्रीय विधि विद्यालय स्थापित करना है।  
                 इन सब धोषणाओं के बावजूद यह देखना दिलचस्प होगा कि कब तक बार काउंसिल और कानून मंत्रालय भारत में विदेशी ला फर्मों के प्रवेश का विरोध करता है। वैसे भी पिछले वर्ष शिक्षा पर आए य़शपाल कमिटि रिपोर्ट में एमसीआई, एआईसीटीई,बार काउंसिल आफ इंडिया ,एनसीटीई,यूजीसी एवं अन्य संस्थाओं को भंग कर एक केन्द्रीय आयोग के गठन का मशविरा सरकार को दिया जा चुका है। इस दिशा में सरकार ने अपना कदम भी बढ़ाना शुरु कर दिया है। सरकार ने असंवैधानिक तरीके से अध्यादेश के जरिए एम सी आई को भंग कर दिया । एम सी आई, एआईसीटीई, बार काउंसिल , यूजीसी जैसी संस्थाएं स्वायत्त संस्थाएं हैं जिसकी स्थापना संसद में एक्ट पारित कर किया गया है। एम सी आई के रहते विदेशी मेडिकल शिक्षण संस्थानों का प्रवेश संभव नहीं था । एम सी आई किसी भी विदेशी संस्थान को भारत में मेडिकल शिक्षा अथवा कैम्पस स्थापित करने की इजाजत नहीं दे सकता था, ऐसा एम सी आई एक्ट में प्रावधान है। एम सी आई को भंग करने के पीछे विदेशी संस्थाओं के आगमण का मार्ग प्रशस्त करना है। देखना होगा कि आगे सरकार एम सी आई के तर्ज पर बार काउंसिल को भंग करती है या यह अपनी स्वायत्तता को बरकरार ऱख पाता है।      


No comments: