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Friday, March 27, 2009

पत्र –पत्रिकाओं के प्रसार के लिए जरुरी है – सेक्स संस्करण ?

यह लेख मीडिया मंत्र के मार्च अंक में छप चूका हैं


हालिया चर्चित अखबार नई दुनिया ने 4 जनवरी,2009 (संडे नई दुनिया) के अपने अंक में खुला पन्ना नाम से "सेक्सं शरणम् गच्छामि" नामक शीर्षक प्रकाशित किया था । इससे कुछ पहले ही आउटलुक पत्रिका का सेक्स सर्वे पर आधारित अंक आया था । इन दोनों में यदि नई दुनिया को छोड़ दें तो आउटलुक में काफी कामोत्तेजक चित्र छपा था । इन दोनों ने सेक्स संबंधी तथ्यों को बड़े ही तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया है । मसलन नई दुनिया में छपा लेख क्रोएसिया के सेक्स संत बाबा मकाजा पर आधारित है । बाबा मकाजा की 5 पत्नी एवं 10 प्रेमिकाएँ हैं । इनका सेक्स की फिलॉसफी पर आधारित आध्यात्मिक स्कूल है । ये अधिकाधिक महिलाओं से संबंध स्थापित करने वालों को डिप्लोमा और डिग्रियॉ प्रदान करते हैं । इनके दर्शन के अनुनायियों का समुदाय पूरी दुनिया में "कोमजा" के नाम से चर्चित है । इनका मानना है कि अधिक से अधिक महिलाओं के साथ संभोग करने से आदमी चैतन्य की अवस्था में पहुँचता है । उनकी चेतना गहरी होती है ,उनका ज्ञानोदय होता है । बाबा मकाज़ा का मानना है कि सेक्स की चरम स्थिति में मानव होने की सीमाएँ खत्म हो जाती हैं । इन्होनें लव ध्यान की पद्धति भी विकसित कर रखी हैं । मकाजा खुद भी इस ध्यान में पूरी तरह लीन रहते हैं । वर्ष 2004 में बाबा मकाजा को अमेरिकन सेक्सुअल इंटेलिजेंस अवार्ड दिया गया ।
आउटलुक के सर्वे में भी आपत्तिजनक चित्रों के साथ सर्वे इन बातों पर आधारित था । मसलन दिन के वक्त सेक्स , और कितनी बार सेक्स । हद तो तब लगा जब सर्वे को आतंकवाद और मंदी से जोड़कर देखा गया । आतंकवाद से चिंतित लोगों की सेक्स बारंबारता कम हो गई है । मंदी में लोग सेक्स कम करते हैं ।
एक बात जो दोनों में कॉमन है कि ,चाहे वह आउटलुक का सेक्स सर्वे हो या नई दुनिया का खुला पन्ना । दोनों ने डाक्टरों तथा मनोचिकित्सकों के तर्कों के माध्यम से सेक्स सर्वे अथवा बाबा मकाज़ा के तथ्यों को सही साबित करने का प्रयास किया है । नई दुनिया ने अपोलो अपस्ताल के एंड्रोलॉजिस्ट अनूप धीर के हवाले से बताया है कि –" सेक्स को लेकर सेक्सोलॉजिस्ट भी वही बात करते हैं ,जो बातें ये सेक्स संत कहते हैं ।" एक दूसरा जीवविज्ञान से संबंधित तथ्य इन्होनें यह भी रखा है कि "सेक्स की एक क्रिया से शरीर की 200 कैलोरी कम हो जाती है और रक्तचाप भी नियंत्रण में रहता है । सेक्स की क्रिया से गुजरने के बाद तनाव मुक्ति का बेहतर अहसास होता है । " ऐसे ही कुछ तथ्य आउटलुक ने भी दिया है । बड़ा आश्चर्य लगता है कि ऐसे पत्र- पत्रिकाओं को यह तर्क नहीं सूझता कि ज्यादा महिलाओं से संबंध बनाने पर एड्स का खतरा बढ़ जाता है । मुझे लगता है कि ऐसे लेख लिखने वाले पत्रकारों ने कभी NACO के इस प्रचार पर ध्यान नहीं दिया है " निभाओ पत्नी से वफादारी ,भगाओ एड्स की बिमारी" । वैसे भी लोग सरकारी विज्ञापनों को ऐसे ही लेते हैं जैसे कि "देख मलेरिया के पोस्टर ,भागे मलेरिया के मच्छर "। शायद बद्धजीवी होते हुए भी ये पत्रकार कभी- कभी मूर्खतापूर्ण कारनामा दिखा देते हैं। क्या इस प्रकार से लोगों को पथभ्रष्ट करना पत्रकारिता के सीमा रेखा का उल्लंघन नहीं है । एक तरफ बाबा रामदेव लोगों को एक्सरसाईज करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ,वहीं ये लेख लोगों को सेक्सरसाईज की शिक्षा दे रहें हैं ।
समझ में नहीं आता कि इस प्रकार के लेखों की सार्थकता क्या है । कभी –कभी तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि सरकार के सेक्स शिक्षा को बढ़ावा देने का जिम्मा इन पत्र-पत्रिकाओं ने ले लिया है । प्रश्न है कि क्या पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा इससे प्रभावित नहीं होती है । यह जान पाना भी मुश्किल हो रहा है कि क्या सामाजिक कायदे – कानून को तोड़कर स्त्रियों को आजादी दी जा रही है अथवा फिर से वही मर्दवादी विचारधारा हावी है ।
हालांकि अगर भारत जैसे देश में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सेक्स सर्वे दिखाया जाए तो बड़ा बवाल होगा । लेकिन प्रिंट को तो इसमें छूट प्राप्त है ,और इस छूट का पूरा-पूरा लाभ वह अपने वितरण को बढ़ाने में करता है । इसकी दूसरा कारण भारतीय लोगों की कुंठित मानसिकता भी है । हमेशा से सेक्स खबरें प्रिंट मीडिया के प्रसार का बड़ा साधन रहा है । लोगों में ऐसी खबरों के प्रति लोकप्रियता सर्वाधिक होती है ,शायद इसलिए मोनिका लेविंस्की कांड और सारा पालिन की बेटी ब्रिस्टल पावेल का बिन ब्याही मॉ बनना मीडिया की सूर्खियों में रहा है । चाहे जितनी भी नीति और अनीति की बात की जाए इस बात से नहीं मुकरा जा सकता कि मीडिया वही दिखाता है ,जो लोग देखना पसंद करते है । अगर सेक्स सर्वे वाली पत्रिका का वितरण सर्वाधिक होता है तो निश्चय ही इसके पीछे लोगों की मौन सहमति होती है ।








1 comment:

Anonymous said...

सेक्स से इतना स्वस्थ्य लाभ होता है तो भारत में तो क्या दुनिया भर में कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए! अमेरिका और फ्रांस में तो डॉक्टर भूखे मर रहे होंगे!