बयान नेता का .....निर्णय जूता का !
वरुण गाँधी जेल चले गए हैं ,लेकिन उनके भड़काऊ भाषण का अंश बार-बार मीडिया में दिखायी पड़ रहा है । वरूण गाँधी के बयान को जिस तरह से मीडिया में तावज्जो दिया गया है , निश्चय ही यह अफसोसजनक है । राजनीति के फर्श से अर्श तक के सफर को तय करने में उनके बयान और मीडिया द्वारा उसके प्रसारण ने आसान बना दिया है । हिन्दुत्व को बढ़ावा देने वाले संगठनों के समर्थन ने वरुण को हिन्दुत्व का हीरो बना दिया । अचानक ही वरुण हिन्दुत्व के बड़े नेता प्रवीण तोगड़िया और नरेन्द्र मोदी सरीखे नेताओं के श्रेणी में शामिल हो गए । कुछ ऐसे ही वरुण गाँधी की तरह पॉपुलर होने के होड़ में लालू और राबड़ी देवी के बयान आए । राबड़ी ने अपने भाषण में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जद यू नेता लल्लन सिंह के खिलाफ घोर अपशब्दों का प्रयोग किया । हांलॉकि बयान विवादास्पद रहे फिर भी बयानों के चुटीलेपन तथा इसके साथ पॉपुलर फेस जुड़े होने के कारण टेलीविजन चैनलों को टी आर पी बटोरने में ज्यादा सहूलियत हुई । टी आर पी बटोरने के होड़ में ये चैनल पत्रकारिता की जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर देते हैं । एक ओर मीडिया चैनल अपने व्यवसायिक लाभ के लिए इस बात का ख्याल कभी नहीं करते कि खबर का क्या प्रभाव समाज पर पड़ेगा ? शायद इसलिए मीडिया चैनल वरुण गाँधी के भाषण ,राबड़ी देवी के अपशब्द तथा टिवंकल खन्ना द्वारा अक्षय कुमार के बटन खोले जाने जैसे खबरों को दिखाने में कोई दिक्कत महसूस नहीं करते हैं । वहीं जब मुंतेजर अल जैदी और जरनैल सिंह जैसे पत्रकारों द्वारा नेताओं के विरोध को गैर जिम्मेदराना व्यवहार मानकर अनुशासत्मक कार्रवाई की बात करते हैं ।
पत्रकार स्वभाव से ही समाज के प्रति संवेदनशील प्राणी होता है । उसे भी गुस्सा आता है । उसे भी अपना विरोध दर्ज करने का अधिकार प्राप्त है । वह देख रहा है कि न्याय किस प्रकार से नेताओं की कठपुतली बन गई है ,तब उसका विरोध लाजिमी है । फिर भी कुछ हद तक विरोध के उस तरीके को गलत माना जा सकता है । पत्रकारों के कलम की ताकत से अबतक तो दुनिया वाकिफ़ थी ही लेकिन पत्रकारों के जूते में भी इतनी ताकत होगी, इसका अंदाजा लोगों को नहीं था । जार्ज बुश पर मुंतेजर अल जैदी के जूता पड़ने के बाद उनपर चला जूता रुकने का नाम नहीं ले रहा है । जैदी का जूता बाद में एक ऑनलाईन गेम बन गया है जहॉ बुश को 1 मिनट में 1000 और 24 धंटे में 20 लाख जूते पड़ रहे हैं । जूता घूमते हुए व्हाइट हॉउस में आकर बुश के पुतले के सिर पर आ पड़ा । जूते को नष्ट कर दिया गया लेकिन नष्ट करने वाले यह नहीं समझ पाए कि यह जूता इतिहास में चला गया है ,जहाँ वह बुश के साथ हमेशा बना रहेगा । सवाल है कि दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति पर जूते पड़ते रहे और क्यों पूरी दुनिया के लोग ताली बजाते रहे ? जाहिर सी बात है अमेरिका के साम्राज्यवादी विस्तार के खिलाफ आक्रोश इन जूतों और तालियों से निकल रहा है । दुनिया के ताकतवर आदमी और उसकी गलत नीतियों पर चला यह जूता न्यूज चैनलों के लिए मशाला था सो इसे बार बार दुहराया गया । इस जूता प्रकरण के बाद यह कयास लगाया जा रहा था कि अगला जूता किसके ऊपर पड़ेगा ,ऐसे में ही पत्रकार जरनैल सिंह का जूता भारत के गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर आ पड़ा । जरनैल सिंह का यह जूता चुनावी मौसम में भारतीय राजनीति में उथल पुथल लाने में कामयाब रहा ।
इस जूते का प्रभाव बड़ा व्यापक पड़ा । इस जूते ने सत्तारुढ़ काँग्रेस के दो निवर्तमान सांसदों के चुनाव लड़ने की संभावना पर ग्रहण लगा दिया । इस जूते ने जरनैल सिंह को हीरो बनाने का कार्य किया । जरनैल के उस जुते की बोली 5 लाख रुपये लगाई गई । अकाली दल ने तो उन्हें अपने टिकट पर चुनाव लड़ने का न्यौता दे दिया । परिस्थिति के प्रभाव को दरकिनार करते हुए जरनैल सिंह ने अपनी गलती के लिए माफी मांगा । बावजूद इसके जरनैल से संबंधित मीडिया संस्थान ने उन पर अनुशासत्मक कार्रवाई की बात की । जरनैल ने सिंह ने अंतत: पत्रकारिता के कर्तव्य का निर्वाह किया ,अब मीडिया संस्थान को भी चाहिए कि वह नैतिक मूल्यों के आधार पर अपना कर्तव्य निभाए ।
चौथे स्तंभ और आम जनता के बीच एक गहरा संबंध होता है । इस देश में भी जितनी क्रांति हुई है,उसमें चौथे स्तंभ का भूमिका सबसे बड़ा रहा है । इस जूता प्रकरण ने लोगों के बीच जूता क्रांति लाने का कार्य किया । अबतक तो पत्रकारों के जुते नेताओं पर बरस रहे थे और अब जनता के जूते भी नेताओं पर पड़ने लगे । उद्योगपति प्रत्यासी नवीन जिंदल के चुनावी सभा में एक बुजुर्ग शिक्षक ने उनपर जूता दे मारा । बिहार में चुनावी सभा करने गए बाहुबली नेता ददन पहलवान को लोगों खदेड़ दिया ।
नेताओं के बयान या जूता प्रकरण को देखा जाए तो नेताओं के बयान की अपेक्षा जूता प्रकरण मीडिया में अपना वर्चस्व बनाए रखा । जूता विरोध का लोकप्रिय माध्यम बनकर उभर रहा है । जूता वैसे ही लोकप्रिय हो रहा है ,जैसा कि "लगे रहो मुन्नाभाई " का गाँधीवाद लोकप्रिय हुआ है । अभी भी जूता थमने का नाम नहीं ले रहा है ,आइए देंखे कि जूता अपना अगला शिकार किसे बनाता है ।
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