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Monday, February 9, 2009

विश्वविद्यालयों का बदलता परिवेश




जीवन चलायमान है और इस चलायमान जीवन में समय एवं परिस्थिति के अनुसार सबकुछ बदलता रहता है समय के साथ विश्वविद्यालयी शिक्षा पद्धति में बहुत ज्यादा परिवर्तन देखने को मिले परंतु इसका परिवेश जीवनकी तरह चलायमान है और अपने में यह निरंतर परिवर्तन करता रहा है समय के साथ छात्रों के बीचसंवाद,परिवेश,मानसिकता एवं संस्कृति सभी ने नया रूप ले लिया है एक समय में संदेश का आदान प्रदानचिठ्ठी से होता है आज यह बदलकर SMS,E-mail, voice sms के रूप में इस परिवेश में मौजूद है छात्र तथाशिक्षक के कपड़ों के संस्कृति में भी परिवर्तन हुआ है हम पैंट-शर्ट ,सलवार कुर्त्ता संस्कृति से आगे बढ़करजींस-शर्ट कुर्त्ता,जींस-टॉप के संस्कृति में अपना कदम रख चुके हैं अभिवादन के मामले में हम गुड ,वेल के सफरको ग्रेट तक तय कर चुके हैं गुरुजनों के अभिवादन में परिवर्तन आया है पैर छूना ,प्रणाम या नमस्ते सेअभिवादन करना पुरानी बात हो चुकी है अब शिक्षक तथा छात्र दोनों ही हाय् से काम चलाते हैं फिर भी पैर छूनाअब भी हमारे संस्कार का प्रतीक है ,खासकर उत्तर भारतीय छात्र अभी भी इस संस्कृति से बाहर नहीं सके हैं किंतु उत्तर भारतीय संस्कार में ही पले बढ़े कुछ शिक्षक इसे संस्कृति मानकर अपसंस्कृति मानते हैं यह बड़ेताज्जुब की बात है कि परिवर्तन सबसे पहला पड़ाव युवा पीढ़ी पर डालती है परंतु इसने कैसे अपना शिकार प्रौढ़तथा विद्वान शिक्षकों को बना लिया जब एक छात्र ने ऐसे ही शिक्षक का अभिवादन किया तो उत्तर में उसे कहागया " चलोचलो ,यहाँ यह सब नहीं किया करो " ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पैर छुकर मैंने गुरू की प्रतिष्ठा कोतार-तार कर दिया है
जब मंदिर (स्कूलकॉलेज) का ईश्वर इस प्रकार से अपने अनुयायी(छात्र) का अनादर करेगा तो फिर अनुयायीउनके साथ कैसा व्यवहार करे ,यह निर्णय मैं आप पर छोड़ देता हूँ परिवेश का यह बदलाव शिक्षक तथा छात्र दोनोंपर व्यापक रूप से प्रभाव डाल रहा है चूँकि हम लोग एक ही संस्कृति से ताल्लुक रखते हैं ,इच्छा होती है कि नामसबके सामने खोलकर रख दूँ खैर छोड़िए नाम में क्या रखा है छात्र भी इन परिवर्तनों से अछूते नहीं है पटनाबी.एन कॉलेज के प्रोफेसर मटुकनाथ और जेएनयू की छात्रा जूली के चर्चित संबंधों से हम यह अंदाजा लगा सकते हैंकि यह संस्कृति भी कहाँ ठहरी है बहुत से प्रोफेसर ,शिक्षक ,और छात्र इस रिश्ते में पक्ष में दिखे और कुछविपक्ष में घटना का प्रत्यक्षदर्शी होने के नाते इसपर पुनः चर्चा की आवश्यकता समझता हूँ चाहे मटुकनाथ कीकालिख पुताई या जुली का मटुक के धर्मपत्नी के द्वारा पीटा जाना ,या बेशर्म भरी मटुक तथा जूली कीबयानबाजी,सब कोई हजार आँखों के सामने आलमजंग थाना में हो रहा था मैं घटना को दुहराने की बजाय इसकेआपसे के सामने यह प्रश्न रखता हूँ कि आखिर क्यों ऐसी दागदार घटनाएँ हमारे समाज में घटती हैं ? मेरावयक्तिगत रूप से मानना है इस तरह की घटनाओं के पीछे सबसे अधिक जिम्मेदार पारिवारिक पृष्ठभूमि होती है मुझे यह तो नहीं मालूम कि मटुकनाथ की पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी थी ,परंतु मटुक के स्वभाव का प्रभाव उनकेपुत्र पर दीखता है घटना के बाद जब प्रो0 मटुकनाथ से पूछा गया कि आपके पुत्र भी आपके इस रिश्ते के खिलाफहैं उत्तर में मटुकनाथ ने कहा था कि शायद मेरा पुत्र भूल गया है कि मैनें उसे महीने भर विदेशी महिलामित्र केसाथ अपने आवास पर जगह दी थी निश्चय ही इन दोनों पिता-पुत्र की बयानबाजी पर यह जुमला ठीक बैठता हैजब गोदाम ही ऐसा हो ,तो उसके माल का क्या कहना ?
परिवेश हमेशा से परिवर्तन की कसौटी रही है पहले जहाँ छात्रों को प्रेम की अभिव्यक्ति करने में अच्छीखासीपरेशानी होती थी समाज की बंदिश छात्रों को ब्रम्हचर्य पालन करने के बाध्य करता था वहीं आज इक्कीसवींसदी के दौर में अभिव्यक्ति तो छोड़े सेक्स पर ही खुलकर बहस होती है हाल के गूगल के आकड़े के अनुसार सबसेज्यादा सेक्स साइट भारत में देखे जाते हैं भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाला सबसे बड़ा तबका युवाओं का है जाहिर सी बात है सही समय के पूर्व ही बच्चों को सेक्स की जानकारी दी जा रही है इसका दूसरा कारणकामकाजी दंपति भी हैं ,जो कि शायद इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि उनके बच्चे उनकी अनुपस्थिति में क्या कररहे हैं ? सेक्स की जानकारी आवश्यक है ,किंतु समय पूर्व इसका ज्ञान एक कुंठित मानसिकता को जन्म देता हैजो विभिन्न स्तरों पर बच्चों में विपरीत प्रभाव डालता है
आज भारत में सेक्स शिक्षा देने पर जोर दिया जा रहा है भारत जैसा राष्ट्र आज सेक्स पर बहस से सबसे ज्यादाघबड़ाता है क्या यह राष्ट्र वात्सयायन को भूल गया ,या फिर खजुराहो को मिट्टी में दबाना चाहता है (गांधी जीकी इच्छा थी खजुराहो मंदिर को मिट्टी में दबा दिया जाए,गुरू रवीन्द्र द्वारा इसका विरोध किया गया था) भारत जैसैराष्ट्र में जो सेक्स चर्चा से जितना धबड़ाता ,भीतर से उसकी मानसिकता उतनी ही कुंठित होती है शायद इसलिएओशो रजनीश के तर्कों को खारिज कर ,उन्हें सेक्स गुरू का संज्ञा दे दिया गया हमें समाज में हो रहे परिवर्तनों कोस्वीकारना होगा कि समस्या से घबड़ाकर भाग खड़ा होना समस्या का हल ढ़ूढ़ने का प्रयास करना चाहिए , किउसे समस्या बने रहने देना चाहिए बड़ी विडंबना है इस राष्ट्र की भ्रष्ट लोग अच्छाई की बात करते हैं और अच्छों को भ्रष्ट घोषित रकते हैं इस समस्या का हल हमें दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता है क्योंकि पावर, पैसा और भागीदारीतीनों में सबसे बड़ी भूमिका इन्हीं लोगों की है ये लोग नेता ,धर्मगुरू तथा हमारे समाज का उच्चवर्गीय तबका है
किसी भी सफलता और असफलता के पीछे केवल एक सीढ़ी का फासला होता हैवह चुनाव का होता है जोअच्छाई का चुनाव करता है ,वह अच्छा बन जाता है और बुराई का चुनाव बुरा बनाता है अतः आज भी भारत के विश्वविद्यालयी परिवेश को सही चुनाव की आवश्यकता है

1 comment:

Anil Kumar said...

बात निकली है तो बहुत दूर तलक जायेगी.

क्या महिलामित्र बनाने वाले पुरूष चरित्रहीन होते हैं?
हाँ बोलने से पहले सोच लीजियेगा - कृष्ण पुरूष थे और उनकी पहली महिलामित्र का नाम राधा था.

क्या बिना शादी किए किसी से प्रेम करते रहना ग़लत है?
हाँ बोलने से पहले फिर से सोच लीजियेगा - लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने राधा से विधिवत् शादी नहीं की थी लेकिन फिर भी उनके प्रेम की चर्चा हजारों सालों से बढती ही जा रही है.

क्या एक से अधिक पुरुषों से किसी स्त्री का सम्बन्ध होना ग़लत है?
हाँ बोलने से पहले फिर से सोच लीजियेगा - द्रौपदी के पाँच पति थे और फिर भी उसपर कोई लांछन नहीं लगाता.

क्या मन्दिर में नग्नता का प्रदर्शन ग़लत है?
हाँ बोलने से पहले फिर से सोच लीजियेगा - खजुराहो का मन्दिर आज भी खड़ा है.

बदलते समय के साथ दुनिया भी बदलती है - इसके साथ साथ मूल्यों और नैतिकताएं भी बदलती हैं. जो कल सही था वह आज ग़लत है, और जो आज ग़लत है वह कल फिर से सही हो सकता है.

मुझे यह नहीं पता की मटुक ग़लत है या सही. जूली के बारे में भी मैं कुछ नहीं कह सकता. फैसला करना मेरे हाथ में नहीं, क्योंकि फैसला करने का अधिकार सिर्फ़ "ऊपर वाले" को होता है. और वह भी मरने के बाद, जीवनकाल में नहीं.

फिर भी कुछ बातों पर गौर किया जाए.

यदि मटुक चरित्रहीन है तो जूली से पहले किसी और पर उसका चरित्र क्यों नहीं फिसला? और जूली के बाद किसी और पर क्यों नहीं फिसल रहा? अधेड़ उम्र, घर में बीवी और बच्चे होने के बावजूद जिस तरह से खुलेआम मटुक अपने प्रेम की अभिव्यक्ति कर रहा है, उसके कई पहलु हो सकते हैं. एक यह की मटुक बेशर्म है. एक यह भी हो सकता है की उसे जूली से इस हद तक प्रेम है की वह समाज के बनाये हुए नियमों को भी भूल चुका है.

आलोचना करने से पहले सभी पहलू देखे जायें, और अपने आपको दूसरे की आत्मा के अन्दर डालकर देखा जाए, तो शायद कुछ समझ में आए.

अन्तिम वाक्य यही कहना चाहूँगा कि किसी दूसरे का प्रेम-प्रसंग उसकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी होता है, और भले मानस बनते हुए उसे गली-गलियारों में न घसीटा जाए इसी में हमारा बड़प्पन होगा.