Pages

Wednesday, April 21, 2010

वैकल्पिक मीडिया : अवधारणा एवं चुनौतियां


आज  के परिदृश्य में मास मीडिया देश और राज्यों की राजधानियों से नियंत्रित हो रहे हैं । इन शहरों का विकास इंफ्राटक्चर और लक्जरी उत्पाद से जुड़ा होता है और इनका जुड़ा़व बहुराष्ट्रीय कंपनियों से । अपने प्रसार में ये कंपनियां विज्ञापन के माध्यम से मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करती हैं । मीडिया की नीतियों को प्रभावित करने में विज्ञापनदाता बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित सर्वोपरि होते हैं , वहीं दूसरी ओर सामाजिक सरोकार कहीं हाशिए पर भी नहीं रह पाते हैं । मुख्य धारा की मीडिया और वैकल्पिक मीडिया अपनी नीतियों का निर्माण कंपनी हित और सामाजिक सरोकार के आधार पर तय करने लगती हैं । यहीं से इन दोनों की विचारधारा में अंतर आने लगता है । मेनस्ट्रीम मीडिया की स्थापना इसके तीन मूल उद्देश्यों के साथ हुआ है । ये उद्देश्य हैं – सूचना , मनोरंजन और शिक्षा । लेकिन बदलते दौर में मुख्यधारा की मीडिया ने विविधता को छोड़कर उपभोक्तावाद संस्कृति का प्रचारक बन गया है । जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में विकल्प तो जन्म लेगा ही । विकल्प मतलब किसका विकल्प । वह है मुख्यधारा का विकल्प ।         
                     वैकल्पिक मीडिया की उपस्थिति पूरे विश्व में है लेकिन भारत में इसकी विशिष्ट भूमिका रही है । भारत के राष्ट्रीय आंदोलन, 1977 की संपूर्ण क्रांति ,देश में हो रहे तमाम तरह के जनआंदोलनों को सफल बनाने में वैकल्पिक मीडिया की अहम भूमिका रही है । वहीं आज की वैकल्पिक पत्रकारिता जनआंदोलनों तक ही सीमित हो रही है । वैकल्पिक मीडिया के साथ यह समस्या है कि यह ज्यादातर उन्हीं लोगों तक सीमित रह जाता है, जिनका वह मुद्दा रहा है । इससे इसके प्रसार में दिक्कतें आती हैं और इसलिए आमतौर पर इसका स्वरूप छोटा होता है । स्वरूप छोटा होने से हम इसे विकल्प मान लेते हैं । लेकिन छोटा होना इसकी परिभाषा नहीं हो सकती है क्योंकि छोटा होकर भी वैकल्पिक मीडिया वह कर सकता है जो मेनस्ट्रीम मीडिया कर रहा है । सिर्फ स्वरूप के छोटा होने से हम इसके व्यापक प्रभाव को नजरअंदाज नही कर सकते । स्वरूप में भले ही यह छोटा है लेकिन संख्या के दृष्टि में नहीं । आडिट ब्यूरो आफ सर्कुलेशन के 2005 के रिपोर्ट के मुताबिक देश में साठ हजार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं । इस रिपोर्ट में एक हजार से ज्यादा पत्र निकालने वाले राज्यों के आकड़े को इस प्रकार पेश किया है –
मध्यप्रदेश(2629),राजस्थान(2590),तमिलनाडु(2010),कर्नाटक(1774),आंध्रप्रदेश(1660), बिहार(1500) और केरल(1443) । गौर करने वाली बात है कि इतनी बड़ी संख्या तो मुख्यधारा के पत्रों की नहीं हो सकती । मेनस्ट्रीम मीडिया ज्यादा से ज्यादा दस से बारह भाषाओं में छपती हैं ,जिनमें सर्वाधिक हिंदी तथा अंग्रेजी के पत्र हैं । इस आकड़े में शामिल पत्र पत्रिकाएं संविधान की सूचि में शामिल बाईस भाषाओं और अंग्रेजी के अलावा इक्यासी अन्य भाषाओं में छपते हैं । यानि इनमें से सबसे बड़ी संख्या वैकल्पिक पत्र पत्रिकाओं की ही है । इसका स्वरूप जरूर छोटा है लेकिन इसका प्रभाव क्षेत्र काफी बड़ा है । छोटा मगर प्रभावी होना इसका लक्षण है ।
                 मेनस्ट्रीम  मीडिया और  वैकल्पिक मीडिया  के बीच विचारधारा और मुनाफे की गहरी खाई है । मेनस्ट्रीम मीडिया विचारों के लिहाज से फूहड़ होती जा रही है,वहीं वैकल्पिक मीडिया के विचारों गंभीरता दिखती है । इस गंभीरता की मूल वजह है ,इसका मुनाफे के लिए न होना । वैकल्पिक मीडिया अर्थ से स्वतंत्र होता है और निम्नतम सुविधाओं के साथ निकाला जाता है । कुल मिलाकर मेनस्ट्रीम मीडिया समाचार के नाम पर खौफ,भावनाओं और आकड़े का व्यापार कर रही है । विगत पिछले कुछ लोकसभा चुनावों से दर्शकों को वोट के आकड़े का खेल बताकर पेश किया जाता रहा है ,जिसकी प्रमाणिकता नहीं के बराबर होती है । वहीं दूसरी ओर आतंकवाद की जड़ लादेन नहीं ,बल्कि काल,क्षेत्र ,जाति,धर्म और अन्याय इसकी जड़ है । यह बताने की इजाजत हमारा बाजार मेनस्ट्रीम मीडिया को नहीं देता है । जब मुबंई में 26/11 का हमला हुआ उस समय इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए आतंकवाद से ज्यादा महत्वपूर्ण ताज होटल के अंदर और बाहर 72 घंटे तक चलने वाला रोमांच था । बड़ी विकट स्थिति पैदा हो रही है ,जिन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी वे गौण हो रहे हैं और उन्हीं मुद्दों का तमाशा बनाकर पेश किया जा रहा है । मेनस्ट्रीम मीडिया के इस बड़े खेल का सबसे बड़ा खिलाड़ी टीआरपी है । उदाहरण के लिए आम बजट के एक दिन पूर्व, एक चैनल को छोड़ बाकी सभी चैनलों ने बजट पर अर्थशास्त्रियों की गंभीर बहस दिखायी वहीं दूसरी ओर एक चैनल ने माईकल जैक्सन का नाच दिखाया । जैक्सन का नाच दिखाने वाले चैनल की 22 की रिकार्ड टीआरपी आंकी गई । कुछ ऐसी ही उम्मीद के साथ के साथ 25 नवंबर 2009 की रात प्राईम टाईम(8.30 बजे) में सभी चैनल 26/11 की बरसी पर खबर दिखा रहे थे वहीं देश का सबसे तेज कहा जाने वाला चैनल बीग-बास शो दिखा रहा था । ऐसी स्थिति में वैकल्पिक मीडिया को अपने मूल उद्देश्यों के साथ साथ महत्वपूर्ण मुद्दों के बदले मामूली खबरों के प्रति लोगों के बढ़ते रूझान से भी लड़ना है । आज के अखबारों को ही लें। देश के 72 फीसदी लोग गांवो में रहते हैं । मनमोहन सरकार द्वारा नियुक्त अर्जुन सेनगुप्ता रिपोर्ट के मुताबिक 77% लोग यानि 84 करोड़ लोग हर व्यवहारिक अर्थ में गरीब हैं । ये लोग इस लोकतंत्र में अपनी सुरक्षा और बुनियादी नागरिक अधिकारों को लेकर चिंतित हैं । लेकिन यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि जिसे आप राष्ट्रीय अखबार कहते हैं उनमें से दस प्रतिशत खबरों का सरोकार भी इन लोगों से नहीं होता है , जबकि अखबार के ढांचे के मुताबिक 70 प्रतिशत खबरें शहर की हों तो 30 प्रतिशत खबर गांवो की होनी चाहिए । कृषि क्षेत्र का संकट तो अब वर्षों पुरानी बात हो चुकी है । हाल ही में दिल्ली में प्रदर्शन करने आए गन्ना किसानों की छवि को धूमिल करने का काम मीडिया ने किया । उन्हें छेड़खानी करने वाले लफंगों और शटर बंद करवाने वाले गुडों की तरह कुछ मीडिया प्रतिष्ठानों द्वारा दिखाया गया । भला कुछ शरारती तत्वों के कारण सीधे साधे किसानों की छवि को इस तरीके से पेश किया जाना कहां तक जायज है । यहीं से मुख्यधारा की मीडिया के बरक्स में विकल्प खड़ा होता है । गंभीर मुद्दों पर चर्चा आरंभ करने का कार्य वैकल्पिक मीडिया शुरू करती है । बाद इन मुद्दों को उठाने का श्रेय मेनस्ट्रीम मीडिया ले जाता है । विडंबना यह भी है कि जब भी वैकल्पिक मीडिया अपना स्वरूप विस्तार करती है तो पूरे बदलाव के साथ वह मुख्यधारा की मीडिया में शामिल हो जाती है । देवदास गांधी ने बतौर संपादक हिन्दुस्तान टाइम्स निकालना शुरु किया । बाद में इसका अस्तित्व बचाने के लिए बिड़ला समूह ने इसका अधिग्रहण कर लिया । वैकल्पिक मीडिया के सामने एक बड़ी चुनौती इसके अस्तित्व को ज्यादा समय तक जिंदा रख पाने की है ।
               आज के इस जमाने में इनफार्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलाजी(आइ सी टी) ने वैकल्पिक मीडिया को ज्यादा मजबूती प्रदान किया है । आइ सी टी ने सबसे ज्यादा शिक्षा और सूचना को सबल बनाने का कार्य किया है । निश्चय ही इसने नए सिरे से वैकल्पिक मीडिया की विविधता को परिभाषित किया है , जो मीडिया से गौण हो रहे शिक्षा जैसे मूलाधार को सबल बनाने की दिशा में अग्रसर है । देश में आइ सी टी के विकास के लिए सरकार ने वर्तमान बजट में 4,268 करोड़ रूपये का अनुदान दिया है । इंटरनेट पर वेबसाइट और ब्लाग भी इसी तकनीक के हिस्से हैं । आज वेबसाइट और ब्लाग के रुप में वैकल्पिक मीडिया मौजूद है । पहली बार 1995 ई0 में मेक्सिको के जपतिस्ता आंदोलन में इंटरनेट का उपयोग किया गया । पहली बार इंटरनेट का इस्तेमाल स्वायत्त इलेक्ट्रानिक संचारक के रूप में किया गया । इसे सूचना तकनीक के प्रथम गुरिल्ला युद्ध की संज्ञा दी गई । दूसरी बार इंटरनेट का उपयोग वैकल्पिक मीडिया के रूप में ब्लाग के माध्यम से पाकिस्तान में हाल में लगाए गए इमरजेंसी के समय किया गया । इमरजेंसी के समय घट रहे अनुभवों को ब्लाग के माध्यम से लोगों ने पूरी दुनिया को अवगत कराया । पाकिस्तानी जनता पर हो रहे ज्यादातियों का पूरे विश्व समुदाय के द्वारा विरोध जताया गया और अंतत: लोगों को उनका नागरिक अधिकार फिर से प्राप्त हो सका । इंटरनेट से पहले भी विजुअल मीडिया के रूप में विकल्प मौजूद था लेकिन बाद में इसके स्वरूप में आमूल परिवर्तन कर सिनेमेटोग्राफी का कानसेप्ट आया । एक समय में काइनेमेटोग्राफी वैकल्पिक मीडिया के रूप में कार्य किया करता था । व्यवसायिकों ने बाद में इस विकल्प के बरक्स में सिनेमेटोग्राफी की शुरूआत की । एक समय तक लोगों में यह अप्रासंगिक बन चुका था ,लेकिन इंटरनेट ने इसमें नई जान डालने की कोशिश की है । यू ट्यूब और अन्य वेबसाइटों ने फिर से काइनेमेटोग्राफी को जीवंत बनाने का कार्य किया है । सिनेमेटोग्राफी और काइनेमेटोग्राफी में मूल अंतर मुनाफे का ही था । मुनाफे के लिए ही सिनेमेटोग्राफी जन्म हुआ और काइनेमेटोग्राफी जैसे सामाजिक सरोकारों से ताल्लुक रखने वाला विजुअल तकनीक अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगा । लेकिन आज यह फिर से प्रासंगिक बन बैठा है और शायद इसलिए यू ट्यूब के विडियोज का उपयोग मुख्यधारा की मीडिया कर रही है । इंटरनेट पर भी विकल्प अभी पूरी तरह से स्वायत्त नहीं हो सका है । चीन के राजनेताओं ने अपने देश में राजनीतिक हितों को सफल बनाने के लिए इंटरनेट पर अंकुश लगाने का काम किया है । चीन में गूगल सर्चइंजन को बैन करना इसी दिशा में की गई कवायद है । आज वैकल्पिक मीडिया के लिए बहुत से अवसर खुल रहे हैं वहीं दूसरी और चुनौतियां भी कम नही हुई हैं । इसके अलावा भी वैकल्पिक मीडिया को सोचना होगा कि हम कैसे किसी चीज को बेहतर कर सकें ।                          
                                       निरंजन
                                                          

2 comments:

honesty project democracy said...

अच्छी विवेचना / वैकल्पिक मिडिया के रूप में ब्लॉग और ब्लोगर के बारे में आपका क्या ख्याल है ? मैं आपको अपने ब्लॉग पर संसद में दो महीने सिर्फ जनता को प्रश्न पूछने के लिए ,आरक्षित होना चाहिए ,पर अपने बहुमूल्य विचार कम से कम १०० शब्दों में रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ / उम्दा देश हित के विचारों को सम्मानित करने की भी वयवस्था है / आशा है आप अपने विचार जरूर व्यक्त करेंगें /

अक्षत विचार said...

नमस्ते,
ब्लाग पुराण में देखें

www.akshatvichar.com