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Friday, February 19, 2010

लोहिया पर आयोजित सेमिनार में हिंदी की उपेक्षा



18 फरवरी 2010 को लोहिया जन्मशतवार्षिकी पर दो दिवसीय सेमिनार का उदघाटन हुआ। यह सेमिनार साहित्य अकादमी द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित किया जा रहा है। सेमिनार का उदघाटन प्रसिद्ध शिक्षाविद और अकादमी के पूर्व निदेशक डा. यू .आर. अनंतमूर्ति के हाथों संपन्न हुआ । दिलचस्प बात यह रही कि उदधाटन सत्र में पत्र प्रस्तुति का माध्यम  अंग्रेजी अनिवार्य रखा गया । उदघाटन वक्तव्य डा. अनंतमूर्ति द्वारा दिया गया । अपने वक्तव्य में अनंतमूर्ति ने जोर देकर कहा कि भारतीय राजनीति में पहली बार ,अनपापुलर होने का साहस डा. लोहिया ने दिखाया । बाद में उन्होनें गांधी को भी इस श्रेणी में ऱखा । उन्होनें लोहिया के साथ बिताये गए अनुभवों से अवगत कराया ।  भाषा के संबंध में लोहिया से हुई बातचीत का जिक्र उन्होनें किया । जिसमें उन्होनें बताया कि मेरे साथ बातचीत करते हुए लोहिया ने कहा अनंतमूर्ति पहली से लेकर स्नातक तक की शिक्षा तुम्हारी अपनी भाषा में होनी जाहिए और परस्नातक की शिक्षा हिंदी में । अनंतमूर्ति ने जब परस्नातक की शिक्षा के बारे स्थनीय भाषा के प्रयोग की बात कही तब गलती स्वीकारते हुए लोहिया ने कहा हिंदुस्तान को एकभाषी नहीं वरन बहुभाषी राष्ट्र रखना उचित होगा । इस बात की चर्चा लगभग सभी विद्वानों की, कि लोहिया हमबोल्ट विश्वविद्धालय के प्रोफेसर के स्वभाषा प्रयोग के प्रति राष्ट्रभक्ति से प्रेरित होकर हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषा के प्रयोग के लिए लड़ाई लड़ी । ख्यातिप्राप्त समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा ने अपना बीज वक्तव्य यह कहते हुए अंग्रेजी में देने से इनकार कर दिया कि जिस भाषा के प्रयोग के विरूद्द एक समय में देश के युवाओं को लोहिया ने दिवाना बना दिया था, उस भाषा में लोहिया जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर बात करना उनके आदर्शों के साथ नाइंसाफी होगी। इसके पीछे अकादमी की अपनी दलील थी कि साहित्य अकादमी राष्ट्र के सभी भाषाओं का नेतृत्व करती है ,इसलिए यथासंभव पत्र प्रस्तुति का माध्यम अंग्रेजी ऱखा गया है । गौरतलब है कि साहित्य अकादमी भारत सरकार की स्वायत्त संस्था है । अकादमी द्दारा  राष्ट्रीय भाषाओं के प्रति इस प्रकार का रवैया पूरी तरह से असंवैधानिक है । संविधान के अष्टम् अनुसूचि में अंग्रेजी भाषा को अभी तक शामिल नहीं किया गया है । न्यायपालिका और कार्यपालिका को अंग्रेजी प्रयोग की छुट संविधान देता है लेकिन भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित साहित्य अकादमी जैसी संस्था का ऐसा रवैया क्षमा के काबिल नहीं है ।

                          उदघाटन सत्र को सच्चिदानंद सिन्हा और साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष को छोड़ सभी वक्ताओं ने अंग्रेजी में संबोधित किया। सत्र की अध्यक्षता अकादमी के सचिव ने की । अपने आप को प्रखर लोहियावादी मानने वाले
समाजवादी एवं पूर्व राज्यसभा सांसद सुरेन्द्र मोहन ने लोहिया के भाषा संबंधी विचारों की चर्चा की करते हुए ,अंग्रेजी में अपना पत्र प्रस्तुत किया । द्वितीय सत्र की शुरुआत डा. नामवर सिंह की अध्यक्षता में शुरू की गई। द्वितीय सत्र और दिनांक 19.02.2010 को संपन्न सत्र हिंदी में संचालित हुई । ऐसा समक्षा जा रहा है नामवर सिंह, मस्तराम कपूर ,राजकिशोर जैसे वक्ताओं ने अकादमी की दलील को एक सिरे से खारिज कर दिया है ।
गौरतलब है कि ऐसे आयोजनों में भारत सरकार भारी भरकम रकम भारतीय भाषाओं एवं साहित्य को समृद्द बनाने के उद्देश्य से खर्च करती है । लोहिया का हिंदी प्रेम जगजाहिर है,ऐसे में साहित्य अकादमी का इस प्रकार का रवैया सैकड़ो सवाल खड़े करता है।    

2 comments:

Anonymous said...

अनन्तमूर्ति को कन्नड में बोलना चाहिए था और साहित्य अकादमी को हिन्दी अनुवाद की व्यवस्था करनी चाहिए थी ।

Anonymous said...

अनन्तमूर्ति को कन्नड में बोलना चाहिए था और साहित्य अकादमी को हिन्दी अनुवाद की व्यवस्था करनी चाहिए थी ।